हाइकु-१९८९ और हाइकु-१९९९ के बाद हाइकु का तीसरा ऐतिहासिक संकलन "हाइकु-२००९" का लोकार्पण इनमेनटेक संस्था के सभागार में गीताभ संस्था के वार्षिक समारोह में हुआ। समारोह की अध्यक्षता हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा० शेरजंग गर्ग ने की, मुख्य अतिथि थे प्रसिद्ध नवगीतकार यश मालवीय, विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा० वेदप्रकाश अमिताभ थे। मंच पर सुप्रसिद्ध कहानीकार से०रा०यात्री, बी०एल०गौड़, ओमप्रकाश चतुर्वेदी पराग तथा कमलेश भट्ट कमल भी उपस्थित थे। लगभग २०० श्रोताओं से खचाखच भरे सभागार में साहित्यकार गिरीश पाण्डे आयकर आयुक्त चेन्नई, प्रसिद्ध गीतकार देवेन्द्र शर्मा इन्द्र, इन्दिरा मोहन, डा० कुँअर बेचैन, ओोमप्रकाश यती, ब्रजकिशोर वर्मा "शैदी", डा० सुरेन्द्र सिंघल(सहारनपुर), कृष्ण शलभ(सहारनपुर), डा० वीरेन्द्र आजम(सहारनपुर), आजकल के सम्पादक डा० योगेन्द्र शर्मा, कृष्ण मित्र, डा० सोमदत्त शर्मा, डा० पंकज परिमल, डा० मधु भारती, डा० अंजू सुमन, प्रताप नारायण सिंह सहित अनेक साहित्यकार उपस्थित थे।
दीप प्रज्ज्वलन के उपरान्त गान्धर्व महाविद्यालय की छात्राओं ने वन्दना प्रस्तुत की। सरस्वती वंदना कवयित्री अंजू जैन ने सुमधुर कंठ से प्रस्तुत कर सभी को भावविभोर कर दिया। हाइकु-२००९ का लोकार्पण समारोह के अध्यक्ष एवं मंचस्थ साहित्यकारों ने किया। कार्यक्रम का संचालन कमलेश भट्ट कमल ने किया। लोकार्पण के उपरान्त डा० जगदीश व्योम ने हाइकु-२००९ पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संकलन में ०४ जनवरी १९२५ से लेकर ०४ जुलाई १९८२ तक के कुल ५७ वर्षों के समाहित किया गया है। संकलन के प्रथम हाइकुकार पद्मश्री गोपालदास नीरज और अन्तिम हाइकुकार हैं नवल बहुगुणा। संकलन में ६० हाइकुकारों की ७ - ७ हाइकु कविताओं को सम्मिलित किया गया है। पाँच प्रवासी भारतीय भी संकलन में शामिल हैं।
कुछ चुने हुए हाइकु भी डा० व्योम ने संकलन से पढ़कर प्रस्तुत किए-
जन्म मरण
समय की गति के
हैं दो चरण।
-गोपालदास नीरज
वंश जो फैला
हो गए पराए से
माता व पिता।
-महेशचन्द्र सोती
सूखा पत्ता भी
छोड़ना नहीं चाहे
खजूर देह।
-डा शिवबहादुर सिंह भदौरिया
किस दर्जी ने
सिला नीला घाघरा
सितारे टाँक।
-भास्कर तैलंग
घाटी की गूँज
दिशा दिशा घूम के
थकी लौटी।
-डा० बल्देव वंशी
जीने न देते
दण्डकारण्य में भी
सोने के मृग।
-श्रीकष्णकुमार त्रिवेदी
जल चढ़ाया
तो सूर्य ने लौटाए
घने बादल।
-डा० कुँअर बेचैन
पुकारा तुम्हें
सिर्फ आवाज लौटी
तुम न आए।
-कृष्ण शलभ
अँधेरी रात
तारे कीलें ठोंकते
उजियारे की।
-सदाशिव कौतुक
कोमा में गया
फिर जगा ही नहीं
मेरा जमीर।
-आर०पी०शुक्ल
टेबुल पर
पड़ी खुली किताब
पढ़ती हवा।
-ज्ञानेन्द्रपति
तितली व्यस्त
बदल नहीं पाई
होली के वस्त्र।
-सन्तोष कुमार सिंह
कोई सामान
बढ़ा जब घर में
हम सिमटे।
-गिरीश पाण्डे
की बगावत
नींव के पत्थरों ने
ढहे महल।
-लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
गर्म हवाएँ
खुली सड़क पर
बीन बजाएँ।
-पूर्णिमा वर्मन
बूँदें ओस की
नहीं मरीं षूप से
वक्त से मरीं।
-डा० वीरेन्द्र आजम
गरजे मेघ
कानाफूसी करते
ऊँचे शीशम।
-रजनी भार्गव
सुबह हुई
उड़ चली नभ में
सिन्दूरी रुई।
-सितांशु कुमार
वही है बुद्ध
जीत लिया जिसने
जीवन-युद्ध ।
-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
आँसू पोंछने
तैयार मिले लोग
निज शर्तों पर।
-सुजाता शिवेन
देखो तो सही
पत्तों का गिरना
पेड़ का जीना।
-रमाकान्त
उग आई है
रिश्तों में नागफनी
गाँव शहर।
-रमेशकुमार सोनी
बँधेगा जब
कुहरा गठरी में
हँसेगी धूप।
-डा० अंजू सुमन
कैद करती
इन्द्रधनुषी रंग
हठीली ओस।
-अंशु सिंह
दुल्हन झील
तारों की चूनर से
घूँघट काढ़े।
-डा० भावना कुँअर
रूई के फाहे
बादलों पर छाए
वृक्ष नहाए।
-अर्बुदा ओहरी
निर्झर धारा
काई का उबटन
प्रकृति वधू।
-स्वाती भालोटिया
डिम्ब फोड़ के
गहन तिमिर का
चहकी भोर।
-नवल किशोर बहुगुणा
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-प्रस्तुति
डा० जगदीश व्योम
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