Monday, December 10, 2012

हाइकु दिवस 2012 पर रायबरेली में गोष्ठी

जग बहरा, कहॉ तक चिल्लाये, एक कबीर - (जय चक्रवर्ती):: हाइकु दिवस 2012 पर रायबरेली में गोष्ठी : एक रिपोर्ट
रायबरेली (04 दिसम्बर) हाइकु दिवस के अवसर पर ‘यदि‘ पत्रिका परिवार की ओर से हाइकु गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता प्रमोद प्रखर ने तथा संचालन भामसुद्दीन ‘अज़हर‘ ने किया। गोष्ठी के प्रारम्भ में ‘यदि‘ के सम्पादक रमाकान्त द्वारा हाइकु विधा के उद्भव एवं विकास तथा हाइकु दिवस के इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश डाला गया। इस अवसर पर डा० सत्यभूषण वर्मा को विशेष रूप से याद किया गया। हाइकु गोष्ठी के प्रारम्भ में सुधीर बेकस ने अपने हाइकु प्रस्तुत किये- जीवन क्या है जीकर जान लेते काश हम भी संवेदना ही ज़िन्दा रख सकेगी हम सबको ये दुनिया तो दुनिया ही रहेगी मेरे बाद भी जाना हमने सपने, सपने हैं जागने पर भामसुद्दीन अज़हर ने हाइकु प्रस्तुत किये- जीवन शैली अपनाई हमने कबूतर सी फ़सलें उगीं जीवन में अपने सुविचार की बैठ गये थे नदी किनारे हम आँसू लेकर राम अवध उमराव ने अपने हाइकु प्रस्तुत किये- हम बुद्धू हैं, तुम बद्धिमान हो चलो ठीक है रमाकान्त के ये हाइकु पसन्द किये गये- धरती बोली उड़ो आसमान में मैं हूँ साथ में यही सोचता कट जायेंगे दिन सुख आयेंगे दूर है वह चलना शुरू करो पास है वह कहो कुछ भी उसका कथानक शब्द से परे अजीत आनन्द का हाइकु - बहुत खोजा फिर भी नहीं मिला एक आदमी जय चक्रवर्ती ने हाइकु प्रस्तुत करते हुये कहा- नदी, बादल हवा, ख़ुशबू, फूल तेरे ही रूप हज़ारों मरे सरकारी आँकड़े सौ पर अड़े शायद तुम छिपे हो यहीं कहीं शायद नहीं जग बहरा कहॉ तक चिल्लाये एक कबीर रामनारायण ‘रमण‘ हाइकु प्रस्तुत किये- नाव नदी में मल्लाहों की आँखें नई सदी में गोष्ठी के अध्यक्षता कर रहे प्रमोद प्रखर ने हाइकु प्रस्तुत करते हुये कहा- मौसम आया हाइकु दिवस का रंगोली लाया मरना है तो कुछ करके मरो ऐसे न मरो। अन्त में रमाकान्त द्वारा सभी आगन्तुकों को धन्यवाद ज्ञापित किया गया।

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